वेनिस में पोप : ‘कला मानवता की शरण का शहर है'

वेनिस में जुदेका की महिला जेल के मगदलेना प्रार्थनालय में वेनिस बिनाएल के शिल्पकारों को संबोधित करते हुए, पोप फ्रांसिस ने उन्हें एक ऐसी दुनिया की कल्पना करने के लिए आमंत्रित किया, जहाँ किसी भी इंसान को अजनबी नहीं माना जाता है।

वेनिस बिनाएल एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रदर्शनी है जो बिनाएल फाउंडेशन द्वारा इटली के वेनिस, में प्रतिवर्ष दो बार आयोजित किया जाता है। इसे 1895 से ही हर साल आयोजित किया जाता है।

वेनिस कला बिनाएल के मंडप में परमधर्मपीठ की ओर से प्रदर्शन कर रहे शिल्पकारों को धन्यवाद देते हुए पोप ने कहा, “दुनिया को शिल्पकारों की जरूरत है।”

उन्होंने कहा, “आपके पास, मैं अजनबी जैसा महसूस नहीं करता: मुझे घर जैसा महसूस होता है। और मुझे लगता है कि यह हर इंसान पर लागू होता है, क्योंकि, कला को सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए, "शरण के शहर" का दर्जा प्राप्त है, एक ऐसा शहर जो सभी को परिचित, शामिल, सुरक्षित और गले लगाने में सक्षम बनाने के लिए, हिंसा और भेदभाव की उपेक्षा करता है।”

यह याद करते हुए कि पुराने नियम में अपराधियों को शरण देने और उनके मामले की सुनवाई होने तक बदला लेनेवालों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए "शरण के शहर" की स्थापना की गई थी, पोप फ्रांसिस ने शिल्पकारों को ऐसे शहरों की कल्पना करने के लिए आमंत्रित किया, "जो अभी मानचित्र पर मौजूद नहीं हैं" लेकिन जहाँ किसी भी इंसान को अजनबी नहीं समझा जाता है।”

पोप ने कहा, "यह महत्वपूर्ण होगा यदि विभिन्न कलात्मक प्रथाएँ शरण के शहरों के नेटवर्क के रूप में हर जगह स्थापित होंगे, जो दुनिया को उन अर्थहीन और खोखले विरोधाभासों से छुटकारा दिलाने में सहयोग करेंगे जो नस्लवाद, विदेशियों से भेदभाव, असमानता, पारिस्थितिक असंतुलन और 'गरीबों के प्रति डर' को जमीन हासिल कराना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “इन विराधाभासों के पीछे हमेशा दूसरों को अस्वीकार करना है। यह स्वार्थ है जो हमें सहयोगियों के द्वीपसमूह के बजाय एकान्त द्वीप के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य करता है।”

इसके बाद पोप फ्राँसिस ने वेनिस के कला बिनाएल में वाटिकन के मंडप के लिए चुने गए शीर्षक, "मेरी आँखों से" पर चर्चा की।

उन्होंने कहा, "हम सभी को देखने की जरूरत है और खुद को देखने का साहस करने की जरूरत," और येसु हमें ऐसा करना सिखाते हैं: "वे हरेक व्यक्ति को प्यार की नजरों से देखते हैं, न्याय नहीं करते, लेकिन जानते हैं कि करीब कैसे रहना और प्रोत्साहन देना है।”  

पोप ने गौर किया कि कला हमें इसी नजरिये से देखना सिखाती है। यह अपने वश में करना अथवा वस्तु के रूप में देखना नहीं है और न ही उदासीन या सतही होना है बल्कि यह हमें चिंतनात्मक नजर रखना सिखाती है। शिल्पकार दुनिया के हिस्से हैं लेकिन वे इसके परे जाने के लिए बुलाये जाते हैं।

अपने संबोधन को समाप्त करते हुए, पोप फ्रांसिस ने आशा व्यक्त की कि समकालीन कला हमें मानवता में महिलाओं के योगदान को महत्व देने में मदद करेगी।

उन्होंने फ्रिडा खालो, सिस्टर मेरी कोरिता केंट और लुईस बुर्जुआ जैसी प्रसिद्ध महिला शिल्पकारों का हवाला देते हुए कहा, "खुशी और पीड़ा अनूठे रूप में नारीत्व में एक साथ होती हैं, जिन्हें हमें सुनना चाहिए क्योंकि उनके पास हमें सिखाने के लिए महत्वपूर्ण चीज है।"

पोप ने अपने संदेश का समापन उपस्थित लोगों को यह निमंत्रण देते हुए किया कि वे उस सवाल को अपने दिल में सुनें जिसको येसु ने योहन बपतिस्ता के संबंध में भीड़ से कहा था, “तुम निर्जन प्रदेश में क्या देखने गये थे? हवा से हिलते सरकंडे को? आखिर तुम क्या देखने गये? यह सवाल "हमें भविष्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करता है।"